सपनो का अब निगाह


सपनो का अब निगाह से मंज़र समेटिये ..
सूरज की आँख खुल गयी, बिस्तर समेटिये,
जब से गए हैं आप, बिखर सा गया हूँ मैं ..
खो जाऊँगा हवाओं में, आकर समेटिये ,
दे दीजियेगा बाद में औरों को मशविरा ..
फ़िलहाल अपना गिरता हुआ घर समेटिये,
फूलों की बात समझें, कहाँ हैं वो देवता ?
ये दानवों का दौर है, पत्थर समेटिये ..!!


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